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Atmjagaran Ki Vela By Param Pujya Sudhanshuji Maharaj.
भारतीय संस्कृति संसार की सन्स्क्रुतीयों से अन्यतम है। इस देश मै ऐसे तत्वावेकता कृषि - मुनि, विद्वान और दूरदर्शी हुए है, जिन्होनें ज्ञान के द्वारा भारतीय संस्कृति की नींव ऐसी पुष्ट आधार शिलाओं पर रखी की जिससे मनुष्य के
सर्वोच्च
सदगुणों का विकास होता है। वेदों, उपनिषदों, पुरानों, रामायण, श्रीमाद्भागावादागिता व अन्य पवित्र ग्रंथो में जो ज्ञान दिया गया है। वह भारत की संचिंत निधि है, जितना उसका उपयोग करो , वह औरो बढाती है। इस ग्रंथो में दिया गया वह अमूल्य दान है, जिसे पाकर प्रत्येक मनुष्य सच्चे सुखा को प्राप्त कर सकता है। इस शृंखला मै "अष्टावक्र महागीता" एक अनन्य ग्रन्थ है। जो राजा जनक और बालक अष्टावक्र के परस्पर वार्तालाप परे आधारित है।
अष्टावक्र १२ वर्ष का एक छोटा सा बालक है, परे ज्ञान में बहुत बड़ा है। अष्टावक्र के पिता राजा जनक के सभा में आए अन्य विद्वान्नों नें उसके पिता को पराजित कर दिया। वह स्वयं सभा में गया, बालक आठ जगह से टेका था, सभा मै बैठे विद्वान उसको देखकर हंसने लगे, बालक शांत खड़ा रहा, जब सब चुप हो गए, तो बालक जोर से हँसाने लगा, पुच्छे जाने परे उसने हसने का कारन बताया। उससे कहा "यहाँ ज्ञानके पारखी नही, अपितु चमडी के पारखी बैठे है"। बस यह उक्ति ज्ञान की पहली ज्योति थी, जिसने राजा जनक भी क्र्रुद्ध, और तब राजा की प्रार्थना परे अष्टावक्र ने जो ज्ञान राजा जनक को दिया, उसी से एक ग्रन्थ उपजा "अष्टावक्र महागीता" । यह ग्रन्थ एक अमूल्य सम्पति है।
आपके संग्रह में इस अमूल्य ग्रथ की परम पूज्य श्री सुधान्शुजी महाराज ने वर्त्तमान समय के संधर्भ मै अपनी सरल, सरस, संम्मोहिनी वाणी में जो व्याख्या की है, वह इस ग्रन्थ को और भी मूल्यवान बना देती है। आज इंसान बड़ी उल्ज़न में है, उसे वह सब कुछ अचछअ लगता है जो उसे और शान्ति देता है।
परम शान्ति देने वाली यह पुस्तक " आत्मजागरण की वेला " उस शक्ति का मार्ग सुगम बना देती है।