Saturday, August 29, 2009

सत्संग के अनमोल मोती - Satsang Ke Anmol Moti




सत्संग के अनमोल मोती - Satsang Ke Anmol Moti

आपके स्वाभाव में इस तरह की ताजगी होनी चाहिये जैसे किसी पाहाडी स्थान पर सुबह - सुबह बेलों पैर खिले हुये फूलों पैर पड़ी ओस की बूंदों में होती है। ओस में नहाए हुआ फूल और चोटी - छोटी कलियाँ देखकर एस लगता है मानो कलियाँ मुस्करा रही है और फूल हॅँस रहे है। पत्तों के ऊपर कुछ ओस की बुँदे ठहरी हुई हों और आप वहौं जाकर खड़े हो जायें तो एकदम ताजगी महसूस होती है। प्रकृति की ताजगी और मासूमियत ही उसका स्वाभाविक सौन्दर्य है।

परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज

मंत्र का मूल है गुरु वाक्य (उपदेश), ध्यान का मूल है गुरुचरण, पूजा का मूल है गुरु की मूर्ति एवं गुरु मोक्ष का मूल है। सदगुरु एअक झरोखा है जिसमे हम अनंत का दर्शन कर सकते है। गुर कोई सम्बन्ध नही है, एक अस्तित्व है। गुर एक शाश्वत अस्तित्व है। गुरु वचनों में घुल मिल जन अस्तित्व से एकाकार हो जन है। आत्मा का स्वभाव शान्ति है। आपकी ह्रदय गुहा में अपर शान्ति विराजमान है। हम सब जानबुझ कर इसे विस्मृत कर बैठे है। गुर वाणी की प्रखर ज्योति विस्मृत के इस कुहासे को दूर कर शीतल शानित की अनुभूति करा देती है। परमपूज्य महारजश्री के पवन उपदेशों से आज मानव को नया जीवन मिल रहा है। अपने ह्रदय के प्रशांत कक्ष मै सदगुरु के वचनों का मनन चिंतन कर अवश्य ही एक नई दिशा - एक नया जीवन प्राप्त होगा।

"सत्संग के अनमोल मोती" महाराजश्री के प्रवचनों के सारगर्भित अंश है, जो परम कल्यानप्रद है। आये, इन अनमोल मोतियों को सँजोकर गुरु के साथ उनके आनंद, उनकी चेतन के भागीदार बने।

सत्संग के अनमोल मोती का ये निवेदन श्रीमान अक्षयवर पाण्डेय के लेखनी से।

परम पूज्य सुधान्शुजी
महाराजश्री के सत्संगों के चुने हुए ये मोती ना की संग्रहीय है। उनको बार बार पढ़के, उनके उपर अमल करने पर जरुर विचार कीजये।


Amrut Bindu Upnishad




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