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Antaryatra - अंतर्यात्रा
हम सब इंसान विपन्न नहीं है अनंत शक्तियों से। हम अपनी शक्तियों से परिचित नहीं है। हमें अपनी सम्पदा का बोध नहीं है: हममें से बहु से प्रतिदिन ध्यान में बैठते है। नववे प्रथिशत ध्यान कराने वाले आँखों को बंद करके बैठने को ही ध्यान समजते है! आँखें बंद, क्षणभर के लिए ध्यान टिकता है, कभी भगवान की सुंदर मूर्ति पर, कभी कृष्ण पर, कभी राम पर, कभी शिव पर और फिर उनके जीवन के विभिन्न रूपों पर। यह सब थोडी देर ही होता है।
बस उसके बाद हतो कभी ध्यान बस के भीड़ पर, कभी तैयार नाश्ते पर, कभी बच्चे और, कभी पड़ोसी पर, और कभी कभी पत्नी क्या बना रही होगी, मुझे कार्यालय भी जन है। अगर जोर जबरदस्ती करके आधा घंटा बैठा भी जाते है आखे मुंद कर, तो कई किलोमीटर की यात्रा कर लेता है यह मन, इह्ताने ही स्वाद चख लेता है वह, कितने ही दृश्य देख लेता है यह मन।
सदागुरु सुधान्शु जी महाराज का यह भजन मुझे बहुत अच्छा लगत है। यह मन न जाने क्या क्या कराये, कुछ ने बने मेर बनाये। महाराज जे के भजन तो वाटिका के एक से एक सुंदर सुगन्धित फुल है। किंतु यह भजन तो मन की चंचलता और लाचारी की वास्तविकता को चित्रित करता है।
इसलिए ये पुस्तक आपके संग्रह में होना जरुरी है। जो आपको ध्यान टिकने की राह दिखता रहे और आपका नैतिकता का मार्गक्रमण सुलभ बनता रहे।
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