Saturday, September 5, 2009

मंजिल की ओर - Towards the Aim


मंजिल की ओर - Towards the Aim

मनुष्य की आनंद्त यता अनवरत रूप से चली आ रही है और यात्रा तब तक जारी रहेगी जब तक उसको अपनी मंजिल नहीं मिल जाती। मंजिल क्या है? परमात्मा का द्वार अर्थात मोक्ष! मोक्ष ही यात्री का अन्तिम पड़ाव है। जीवन में मंजिल तक पहुचने के लिए मनुष्य को सदा चलते रहना चाहिए। इसलिए उपनिषद के क्र्रुशी ने उदघोशना की है की चरैवेति - चरैवेति वरन है विन्दते मधुम। जो चलते है वाही परमात्मा के आनंद को प्राप्त कर सकते है। साथ ही मनुष्य को हर रोज एक नई दिशा की नई उत्साह का, नए उल्लास की, आवश्यकता पड़ती है। हम अपनी मंजिल की और आगे कैसे पढ़ सकते है? आये! सुने परम पूज्य सुधान्शुजी महारजश्री पवित्र उदबोधन को।

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