महर्षि वेदव्यास गुरुकुल __ आनंद धाम आश्रम, बक्करवाला मार्ग, नांगलोई, दिल्ली ४१
भारतीय संस्कृति के यग्न कुण्ड मै आप भी
Wednesday, September 9, 2009
Tuesday, September 8, 2009
Monday, September 7, 2009
Saturday, September 5, 2009
Vidhyarthi Prathiba Vikas By Pujya Sudhanshuji Maharaj
Vidhyarthi Prathiba Vikas By Pujya Sudhanshuji महाराज
विद्यार्थी प्रतिभा विकास, परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज के सरल और सहज शैली में बताये गए विद्यार्थी जीवन के मुलभुत विकास आवश्यक सूत्रों का ये एक उपहार है। आपके बच्चों के पास जरुर होना चाहिए। कई सूत्रों को आप भी अपना सकते है, क्योंकि सीखना जिंदगी में कभी रुका नही है।
विद्यार्थी प्रतिभा विकास, परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज के सरल और सहज शैली में बताये गए विद्यार्थी जीवन के मुलभुत विकास आवश्यक सूत्रों का ये एक उपहार है। आपके बच्चों के पास जरुर होना चाहिए। कई सूत्रों को आप भी अपना सकते है, क्योंकि सीखना जिंदगी में कभी रुका नही है।
धर्म क्या है - What is Religion
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धर्म क्या है - What is Religion
जिन गुणों को धान करने से मानवता पूजित होती है उन गुणों शास्त्रों मै धर्म कहा गया है। जिनसे न तो किसी को विरोध होता है और न ही भिन्नता व् धारणीय तत्व है। सत्य, धैर्य, क्षमा, दम, अस्तेय, विद्दा आदि जिनके कारण मानवता पूजित ही नहीं बल्कि जीवित भी रहती है। मानव जीवन में धर्म की क्या उपयोगिता है? इसके समाधान के लिए आईये परम पूज्य श्री सुधान्शुजीमहाराज की मुखारविंद से निकले हुए अमृतमयी वचनों को सुने और जीवन में धर्म को अपनाएं।
जीवन के प्रश्न - Questions of Life
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जीवन के प्रश्न - Questions of Life
वह कोइँ है जो रंग - बिरंगी तितलियों के पंखों को रंगता है? कोई है जो चंद्रमा मै मुस्कराता है? किसका प्रकाश सूर्य के द्वारा संसार में आता है? मनुष्य किस दुनिया से आया है? और किस दुनिया में जाएगा? जीवन क्या है? ऐसे मनुष्य के मन में अनेको जिग्यनासा मनुष्य के स्वाभाविक क्रिया है। आएये इन सभी प्रश्नों के समाधान हेतु सुनें परमपूज्य सुधान्शुजी महाराज के ह्रुदयगुहा से निकले हुए अमृतमय संदेश को "जीवन के प्रशन" सी, डी द्वारा।
मंजिल की ओर - Towards the Aim
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मंजिल की ओर - Towards the Aim
मनुष्य की आनंद्त यता अनवरत रूप से चली आ रही है और यात्रा तब तक जारी रहेगी जब तक उसको अपनी मंजिल नहीं मिल जाती। मंजिल क्या है? परमात्मा का द्वार अर्थात मोक्ष! मोक्ष ही यात्री का अन्तिम पड़ाव है। जीवन में मंजिल तक पहुचने के लिए मनुष्य को सदा चलते रहना चाहिए। इसलिए उपनिषद के क्र्रुशी ने उदघोशना की है की चरैवेति - चरैवेति वरन है विन्दते मधुम। जो चलते है वाही परमात्मा के आनंद को प्राप्त कर सकते है। साथ ही मनुष्य को हर रोज एक नई दिशा की नई उत्साह का, नए उल्लास की, आवश्यकता पड़ती है। हम अपनी मंजिल की और आगे कैसे पढ़ सकते है? आये! सुने परम पूज्य सुधान्शुजी महारजश्री पवित्र उदबोधन को।
शाश्वत धर्म - Long Lasing Religion
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शाश्वत धर्म - Long Lasing Religion
शाष्वत धर्म वह है जो सदा से है और स्वाभाविक है जैसे सत्य, दम, तप, शौच संतोष आदि ये वो गुण है जिन्हें अपनाने से आत्मा निरंतर निर्मल होती जाती है। इनसे ही आत्मा में निखार आता है और व्यक्ति देवत्व धारण करता है। आएये शाश्वत धर्म क्या है? सुनें परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज की ह्रुदयगुहा से निकले हुए अमृत संदेश को इस आडियो सी, डी, द्वारा अपने जीवन को धर्ममय करे।
परम सत्य को जानो - Understand the Ultimate Truth
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परम सत्य को जानो - Understand the Ultimate Truth
सत्य वह है जो देशकाल परिस्थिति की सीमा मै बंधा हुआ न हो, जिसका स्वरुप सतचित और आनंद है उस परमात्मा तक पहुँचने के लिए अपने ग्रुदय का प्रक्षालन आवश्यक हीं नहीं बल्कि अत्यावश्यक है। क्योंकि वह सत्य स्वरुप परमात्मा शुद्ध ह्रदय मन्दिर में ही विराजमान होते है। आएये उस सर्वोत्कृष्ट परम सत्य को जानने के लिए सुनें परमपूज्य श्री सुधान्शुजी महाराज के ह्रुदयग्रुहा से निकले हुए अमृत उपदेश को।
भक्ति ज्ञान और घ्यान
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भक्ति ज्ञान और घ्यान
भक्ति ज्ञान और ध्यान परम प्रिय परमात्मा के आनंद धाम तक पहुँचने के सरल सोपन है। जिसको सरल, सहज, प्रकार, अनुभूत पद्धति और धार्मिक ग्रंथो के साक्षिपुर्वक परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज ने इस संबंध में कृपापूर्वक अमृतमय दिव्य उपदेश दिए है। जिनके मध्यम से हम अध्यात्मिक मार्ग के पथिक अपना मार्ग सहज ही खोज सकेंगे। परम पूज्य श्री सुधान्शुजी महाराज आज अपने अमृतमय वाणी के माध्यम से जन - जन को धार्मिक प्रासाद प्रदान कर रहे है। हजारों लाखों श्रध्दालु उनकी रस - माधुरी से तरंगित होकर साधना से परम धाम तक के उपाय जान चुके है।
प्रस्तुत सी, डी, आप श्रवण कर परम आनंद को प्राप्त करने की कोशिश करें।
गीताज्जली भाग १ -
गीताज्जली भाग १ -
१ नमस्कार भगवान तुम्हे
२ तेरी मेहरबानी का है बोझ इतना
३ मेरा नाथ तू है
४ भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना
५ तेरे नम का सिमरन करके
६ दाता तेरे सुमिरन का वरदान
७ हम सब मिलके आए दाता
८ मेरे दाता के दरबार में
१ नमस्कार भगवान तुम्हे
२ तेरी मेहरबानी का है बोझ इतना
३ मेरा नाथ तू है
४ भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना
५ तेरे नम का सिमरन करके
६ दाता तेरे सुमिरन का वरदान
७ हम सब मिलके आए दाता
८ मेरे दाता के दरबार में
सिमरन - Sing Prayers
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सिमरन - Sing Prayers
१ ॐ नमो नारायणा
२ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
३ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
४ ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
सिमरन एक मन उसके नम में तल्लीन कराने की कला है। ये आपको अपने मन को जीवन के प्रशनों से हटाकर अपने आप में समाने में मदद करती है।
आए परम पूज्य श्री सुधान्शु जी से मुखरित इन मंत्रों के सहारे उस परम पिता परमेश्वर का ध्यान करे।
नमन - Pray
जीवन सरिता - Flow of Life
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जीवन सरिता - Flow of Life
शान्स्त्रों में जीवन को अनेक उपमाए देकर कहा कि जीवन एक अवसर है, जीवन एक परीक्षक है, जीवन एक संघर्ष है, परन्तु यहाँ परमपूज्य सुधान्शु जी महाराज ने जीवन को ऐसी सरिता कहा है कि जहा आशा नाम सरिता (नदी) है, जिसमे मनोरथ रूपी जल भरा हुआ है। तुर्ष्ना कि तरंगे उठती है और जिसमे अनेको जिव जंतु रहते है।
ऐसी अध्यात्मिक एवम भंयंकर सरिता को कैसे पर करे और किसके सहारे पर करे? पार पहुचकर परम प्यारे प्रभु से कैसे मिले क्योंकि यह जीवन पुरा प्रभु को प्राप्त करने के लिए मिला है। ___ सुनें परम पूज्य श्री सुधान्शुजी महाराज से मुखरित हुए अमृत वचनों को जीवन सरिता सी, डी, द्वारा।
गीतांजलि भाग २
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गीतांजलि भाग २
गीताज्जली भाग २ के भजन भक्ति साधना में तल्लीन होकर गाये गए भजन है। भजन कुछ इस प्रकार है।
१ मेरा उद्दयेश हो प्रभु __ को तेरी
२ मानव तू अगर चाहे दुनिया को
३ साथ ले लो पिता, आगे बढ़ जाऊंगा
४ उस प्रभु की है कृपा बड़ी
५ इस जीवन की सुंदर कलिका
६ एक तेरी दया का दान मिले
७ आनंद स्त्रोत बह रहा पर तू उदास है
८ मुझे ऐसा बनो दो मेरे पिता
९ बातों ही बातों में बीती में उमरिया
१० जगत में चिंता मिति उन्ही की जो
परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज
वंदना भाग २
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वंदना भाग २
प्रार्थनामय भजन परम पूज्य सुधान्शु जी महारज के अमृत मय वाणी में। भक्ति साधना में तल्लीन होकर गाए गए भजन।
१ आए तेरे द्वार नमस्कार
२ गाये जा गाये जा
३ ईश्वर जो कुछ करता है
४ प्रभु को न याद किया
५ किसी के कम जो आए
६ न यह तेरा न यह मेरा
७ कर बंदगी और भजन
८ दाता तेरे शक्ति का सुख
९ उलझ मत दिल बहरों में
१० सरे जहा के मालिक
परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज
वंदना भाग १
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वंदना भाग १
१ डूबते को बचा लेने वाले
२ है ज्ञान रूप भगवान
३ ईश्वर तुम्ही दया करो
४ उठ नम सिमर, मत सोय रहो
५ शरण में ए है हम तुम्हारी
६ जागो रे जिन जगाना
७ एक झोली में फूल भरे है
वंदना १ भजन की सीडी संग्रहनीय है।
परम पूज्य शुधान्शुजी महाराज
भजन आडियो सीडी वरदान
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वरदान - Blessings
१ हे नाथ अब तो ऐसी दया हो
२ शरण में पड़ा तुम्हारे
३ भला करो भगवान सबका भला करो
४ राम का सिमरण किया करो
५ तेरी मेहरबानी का बोझ है इतना
६ हे जगतपिता। हे जगप्रभु।
७ नैया पड़ी मझधार
८ गुरु बिना कैसे लागे पार
वरदान ये प्रार्थनामय भाजोंं की ऐसे आडियो सीडी है, जो भक्ति साधना में आपको तल्लीन करे।
भजन आडियो सीडी वरदान
Friday, September 4, 2009
धर्मदूत - Monthly Letter
धर्मदूत - Monthly Letter
धर्म एवं सामाजिक जग्रूती का अनुपम मासिक पत्र
विश्वविख्यात संत पूज्य सुधान्शुजी की अमृत वाणी हर महीने अपने घर मै पाईये।
जैसे जैसे हम संसार में उलज़ते हट है हमारी साडी शक्ति न जाने कहाँ खर्चा हो जाती है। उड़ान खत्म हो जाती है। और आदमी रोज उलाज़ा रहा है। मोह ममत के सूत इतने गहरे है की उनको तोड़ पाना, उनसे बहार निकलान आसान नही है।
धर्म एवं सामाजिक जग्रूती का अनुपम मासिक पत्र
विश्वविख्यात संत पूज्य सुधान्शुजी की अमृत वाणी हर महीने अपने घर मै पाईये।
जैसे जैसे हम संसार में उलज़ते हट है हमारी साडी शक्ति न जाने कहाँ खर्चा हो जाती है। उड़ान खत्म हो जाती है। और आदमी रोज उलाज़ा रहा है। मोह ममत के सूत इतने गहरे है की उनको तोड़ पाना, उनसे बहार निकलान आसान नही है।
Saturday, August 29, 2009
अमृत कलश - Amrut Kalash - Pot of Devinne Juice
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अमृत कलश - Amrut Kalash - Pot of Devinne Juice
The Amrut Kalash is pitcher full of Ambrosia collection of works of Param Pujya Sudhanshuji Maharaj. Amrut is Ambrosia. Kalash is pitcher full of ambrosia you will notice used for all aspicious occassions.
The words of wisdon flowing fromthe spiritual depths and experiences of His Holiness Shri Sudhanshuji Maharaj are the blooms and bursts of color adn fragrance, vibrant as sparklers in festive display. The words by Guru (GuruVani) teach us to Live Life like the smiling spring.
श्री मदभागवद गीता भाग २ - श्री MadBhagawaGita Part 2
श्री मदभागवद गीता भाग २ - श्री MadBhagawaGita Part २
गीता संदेश - Gita Sandesh - Message of Gita
गीता संदेश - Gita Sandesh - Message of Gita
गीता सुगीता कर्तव्या
गीता सुगीता करने योग्य है, अर्थात श्रीगीताजी को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भावसहित अंतकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जों कि स्वयं पद्मनाभ विष्णु के मुखारविंद से निकली हुई है।
ये महर्षि वेदव्यास के उद्गार है। वास्तव में गीता के महत्व का वर्णन करने कि सामर्थ्य किसी में नही है। इस रहस्यमय धर्मग्रंथ में समस्त वेदों का सार निहित है। संपूर्ण विश्व के किसी धर्मं में, किसी भाषा में इतना सुंदर अध्यात्म विषयक कोई धर्मग्रंथ नहीं है। इसे पढ़कर ठीक ठीक सुंदर a
गीता सुगीता कर्तव्या
गीता सुगीता करने योग्य है, अर्थात श्रीगीताजी को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भावसहित अंतकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जों कि स्वयं पद्मनाभ विष्णु के मुखारविंद से निकली हुई है।
ये महर्षि वेदव्यास के उद्गार है। वास्तव में गीता के महत्व का वर्णन करने कि सामर्थ्य किसी में नही है। इस रहस्यमय धर्मग्रंथ में समस्त वेदों का सार निहित है। संपूर्ण विश्व के किसी धर्मं में, किसी भाषा में इतना सुंदर अध्यात्म विषयक कोई धर्मग्रंथ नहीं है। इसे पढ़कर ठीक ठीक सुंदर a
स्वर्ग की लहरे - Waves of Haven - Swarg Ki Lahare
स्वर्ग की लहरे - Waves of Haven - Swarg Ki Lahare
समर्पण आकाश है, आकाश की सीमा नहीं होती । कोई तलाश कर उन सीमाओं की। कोई बाँधसकता है आकाश को? श्रध्दा और आस्था वे पुष्प हैं जिनकी सुगंध बहुत ही मदमाती है। मस्ती हैउनमें, खुमारी है उनमे, समर्पण, श्रध्दा और आस्था की त्रिवेणी, बडी ही सुन्दर संगमधारा गंगा, यमुना, और सरस्वती की, पुण्य का धाम, एक तीर्थ, एक मुक्ति का द्वार। बात विश्वास की है, यहीविश्वास संजोये बहन शंकुतला अग्रवाल जी आती है मेरे पास। कहती है - कुछ बात करनी है ।महराजश्री के पवन आशीर्वाद से गद-गद, पुलकित कुछ कह नहीं पाती है, रोम-रोम में जैसेपुल्कन है, पिघल रह है जैसे सब कुछ, आँखों में सहसा पनि की बूंदे, हर्ष की, उल्लास की, वसंतकी, मधुमास की, हास की, परिहास की, आशा और आस्था की, विनम्रता की, कुछ कह नहीं पायीं, पर मैं समझ गया - स्वर्ग की लहरे, मूल पुस्तक आत्मजागरण की वेला का दुसरा भाग, समर्पितकरना चाहती हैं, सदगुरु चरणों में। उनके शब्द उनकी वाणी, अमृत जैसी मिश्री रस घोल देती हैजीवन में, प्रकाशित करने का विचार, और फिर अवसर गुरुपुर्निमा का। गुर तो बरसते है कृपालगातार, वर्षा करते है स्नेह कि, सद्ज्ञान की, लहरे बाटते हैं राम की, भगवान की, शिष्य क्यासमर्पित करे? सोचा, जो मन के भाव है, अर्पित करो वही गुरुचरण में।
और यह पुस्तक 'स्वर्ग की लहरे', कागज के पत्ते नहीं हैं ये। यह वाणी है सदगुरु सुधान्शुजीमहाराज के। यह सुगंध है बहन अग्रवाल के समर्पण की, उनकी आस्था के ज्योति है, श्रध्दा कामोती है, यह आपके जीवन मे अमृत रस घोल दे, यही कामना है हमारी! इस पुस्तक के प्रकाशनमें और लगभग सभी पुस्तकों के प्रकाशन मे हमेशा योगदान रहता है एक ऐसे मोंन, शांत औरसमर्पित व्यक्तित्व का, जो नम नहीं चाहता, मौंन सेवा की मूर्ति, किन्तु मेरा मन मान नहीं रहा है।आशीर्वाद है मोनिका को, जिसका रोम-रोम मिशन की सेवा को समर्पित है। भगवान उसे सुख देऔर महारजश्री का सान्निध्य उसे मिलता रहे और उसकी लगन की ज्योति बनी रहे !
'आत्मजागरण की वेला' मिशन की सबसे पहली पुस्तक थी, मुखपृष्ट पर महाराज्श्री का सुन्दरचित्र उसी समय का तलाशा है हमने।
- डाँ नरेन्द्र मदान
समर्पण आकाश है, आकाश की सीमा नहीं होती । कोई तलाश कर उन सीमाओं की। कोई बाँधसकता है आकाश को? श्रध्दा और आस्था वे पुष्प हैं जिनकी सुगंध बहुत ही मदमाती है। मस्ती हैउनमें, खुमारी है उनमे, समर्पण, श्रध्दा और आस्था की त्रिवेणी, बडी ही सुन्दर संगमधारा गंगा, यमुना, और सरस्वती की, पुण्य का धाम, एक तीर्थ, एक मुक्ति का द्वार। बात विश्वास की है, यहीविश्वास संजोये बहन शंकुतला अग्रवाल जी आती है मेरे पास। कहती है - कुछ बात करनी है ।महराजश्री के पवन आशीर्वाद से गद-गद, पुलकित कुछ कह नहीं पाती है, रोम-रोम में जैसेपुल्कन है, पिघल रह है जैसे सब कुछ, आँखों में सहसा पनि की बूंदे, हर्ष की, उल्लास की, वसंतकी, मधुमास की, हास की, परिहास की, आशा और आस्था की, विनम्रता की, कुछ कह नहीं पायीं, पर मैं समझ गया - स्वर्ग की लहरे, मूल पुस्तक आत्मजागरण की वेला का दुसरा भाग, समर्पितकरना चाहती हैं, सदगुरु चरणों में। उनके शब्द उनकी वाणी, अमृत जैसी मिश्री रस घोल देती हैजीवन में, प्रकाशित करने का विचार, और फिर अवसर गुरुपुर्निमा का। गुर तो बरसते है कृपालगातार, वर्षा करते है स्नेह कि, सद्ज्ञान की, लहरे बाटते हैं राम की, भगवान की, शिष्य क्यासमर्पित करे? सोचा, जो मन के भाव है, अर्पित करो वही गुरुचरण में।
और यह पुस्तक 'स्वर्ग की लहरे', कागज के पत्ते नहीं हैं ये। यह वाणी है सदगुरु सुधान्शुजीमहाराज के। यह सुगंध है बहन अग्रवाल के समर्पण की, उनकी आस्था के ज्योति है, श्रध्दा कामोती है, यह आपके जीवन मे अमृत रस घोल दे, यही कामना है हमारी! इस पुस्तक के प्रकाशनमें और लगभग सभी पुस्तकों के प्रकाशन मे हमेशा योगदान रहता है एक ऐसे मोंन, शांत औरसमर्पित व्यक्तित्व का, जो नम नहीं चाहता, मौंन सेवा की मूर्ति, किन्तु मेरा मन मान नहीं रहा है।आशीर्वाद है मोनिका को, जिसका रोम-रोम मिशन की सेवा को समर्पित है। भगवान उसे सुख देऔर महारजश्री का सान्निध्य उसे मिलता रहे और उसकी लगन की ज्योति बनी रहे !
'आत्मजागरण की वेला' मिशन की सबसे पहली पुस्तक थी, मुखपृष्ट पर महाराज्श्री का सुन्दरचित्र उसी समय का तलाशा है हमने।
- डाँ नरेन्द्र मदान
गीतांजलि - GitaAnjali
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गीतांजलि - GitaAnjali
गीतांजलि परमेश्वर के चरणों में दी हुई अक गीतों की आहुति है। आपकी अंजलि पुरी भर जायेगी इन भजनों से। भजनों का संग्रह उसकी प्रशंसा, प्रार्धना, और भक्ति कराने की आपको अनुभूति देती है। अगर आप गाने में प्रवीन भी नही हो तो भी इनको गुनगुनाते हुए आप को परमेश्वर की पुरी भक्ति का आनंद होगा।
सत्संग के अनमोल मोती - Satsang Ke Anmol Moti
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सत्संग के अनमोल मोती - Satsang Ke Anmol Moti
आपके स्वाभाव में इस तरह की ताजगी होनी चाहिये जैसे किसी पाहाडी स्थान पर सुबह - सुबह बेलों पैर खिले हुये फूलों पैर पड़ी ओस की बूंदों में होती है। ओस में नहाए हुआ फूल और चोटी - छोटी कलियाँ देखकर एस लगता है मानो कलियाँ मुस्करा रही है और फूल हॅँस रहे है। पत्तों के ऊपर कुछ ओस की बुँदे ठहरी हुई हों और आप वहौं जाकर खड़े हो जायें तो एकदम ताजगी महसूस होती है। प्रकृति की ताजगी और मासूमियत ही उसका स्वाभाविक सौन्दर्य है।
परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज
मंत्र का मूल है गुरु वाक्य (उपदेश), ध्यान का मूल है गुरुचरण, पूजा का मूल है गुरु की मूर्ति एवं गुरु मोक्ष का मूल है। सदगुरु एअक झरोखा है जिसमे हम अनंत का दर्शन कर सकते है। गुर कोई सम्बन्ध नही है, एक अस्तित्व है। गुर एक शाश्वत अस्तित्व है। गुरु वचनों में घुल मिल जन अस्तित्व से एकाकार हो जन है। आत्मा का स्वभाव शान्ति है। आपकी ह्रदय गुहा में अपर शान्ति विराजमान है। हम सब जानबुझ कर इसे विस्मृत कर बैठे है। गुर वाणी की प्रखर ज्योति विस्मृत के इस कुहासे को दूर कर शीतल शानित की अनुभूति करा देती है। परमपूज्य महारजश्री के पवन उपदेशों से आज मानव को नया जीवन मिल रहा है। अपने ह्रदय के प्रशांत कक्ष मै सदगुरु के वचनों का मनन चिंतन कर अवश्य ही एक नई दिशा - एक नया जीवन प्राप्त होगा।
"सत्संग के अनमोल मोती" महाराजश्री के प्रवचनों के सारगर्भित अंश है, जो परम कल्यानप्रद है। आये, इन अनमोल मोतियों को सँजोकर गुरु के साथ उनके आनंद, उनकी चेतन के भागीदार बने।
सत्संग के अनमोल मोती का ये निवेदन श्रीमान अक्षयवर पाण्डेय के लेखनी से।
परम पूज्य सुधान्शुजी महाराजश्री के सत्संगों के चुने हुए ये मोती ना की संग्रहीय है। उनको बार बार पढ़के, उनके उपर अमल करने पर जरुर विचार कीजये।
Amrut Bindu Upnishad
वेद सरिता - Ved Sarita
वेद सरिता - Ved Sarita
वेद सर्वज्ञ प्रभु द्वारा प्रदत्त ज्ञान है। चरों वेद सार्व्लोकिक सिध्दांतों से परिपूर्ण होने के कारण
मनुष्यमात्र और समस्त संसार के लिये कल्याणकारक है। यथार्थ में परमपिता परमात्मा ने संसार की भलाई के लिये सृष्टि के आदि में अपने अटल नियमों को चारों वेदों के द्वारा प्रकाशित किया। चारों वेद एक तो सांसारिक व्यवहारों का उपदेश करते है। इन्हे त्रयी - विद्या अर्थात तीनों विद्धाओं का भंडार कहते है। जिनका अर्थ परमेश्वर के कर्म, उपासना, और ज्ञान से संसार के साथ उपकार कारना है। इस प्रकार वेद संपूर्ण ज्ञान का भंडार है।
वेद सर्वज्ञ प्रभु द्वारा प्रदत्त ज्ञान है। चरों वेद सार्व्लोकिक सिध्दांतों से परिपूर्ण होने के कारण
मनुष्यमात्र और समस्त संसार के लिये कल्याणकारक है। यथार्थ में परमपिता परमात्मा ने संसार की भलाई के लिये सृष्टि के आदि में अपने अटल नियमों को चारों वेदों के द्वारा प्रकाशित किया। चारों वेद एक तो सांसारिक व्यवहारों का उपदेश करते है। इन्हे त्रयी - विद्या अर्थात तीनों विद्धाओं का भंडार कहते है। जिनका अर्थ परमेश्वर के कर्म, उपासना, और ज्ञान से संसार के साथ उपकार कारना है। इस प्रकार वेद संपूर्ण ज्ञान का भंडार है।
Antaryatra - अंतर्यात्रा
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Antaryatra - अंतर्यात्रा
हम सब इंसान विपन्न नहीं है अनंत शक्तियों से। हम अपनी शक्तियों से परिचित नहीं है। हमें अपनी सम्पदा का बोध नहीं है: हममें से बहु से प्रतिदिन ध्यान में बैठते है। नववे प्रथिशत ध्यान कराने वाले आँखों को बंद करके बैठने को ही ध्यान समजते है! आँखें बंद, क्षणभर के लिए ध्यान टिकता है, कभी भगवान की सुंदर मूर्ति पर, कभी कृष्ण पर, कभी राम पर, कभी शिव पर और फिर उनके जीवन के विभिन्न रूपों पर। यह सब थोडी देर ही होता है।
बस उसके बाद हतो कभी ध्यान बस के भीड़ पर, कभी तैयार नाश्ते पर, कभी बच्चे और, कभी पड़ोसी पर, और कभी कभी पत्नी क्या बना रही होगी, मुझे कार्यालय भी जन है। अगर जोर जबरदस्ती करके आधा घंटा बैठा भी जाते है आखे मुंद कर, तो कई किलोमीटर की यात्रा कर लेता है यह मन, इह्ताने ही स्वाद चख लेता है वह, कितने ही दृश्य देख लेता है यह मन।
सदागुरु सुधान्शु जी महाराज का यह भजन मुझे बहुत अच्छा लगत है। यह मन न जाने क्या क्या कराये, कुछ ने बने मेर बनाये। महाराज जे के भजन तो वाटिका के एक से एक सुंदर सुगन्धित फुल है। किंतु यह भजन तो मन की चंचलता और लाचारी की वास्तविकता को चित्रित करता है।
इसलिए ये पुस्तक आपके संग्रह में होना जरुरी है। जो आपको ध्यान टिकने की राह दिखता रहे और आपका नैतिकता का मार्गक्रमण सुलभ बनता रहे।
Atmjagaran Ki Vela आत्मजागरण की वेला
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Atmjagaran Ki Vela By Param Pujya Sudhanshuji Maharaj.
भारतीय संस्कृति संसार की सन्स्क्रुतीयों से अन्यतम है। इस देश मै ऐसे तत्वावेकता कृषि - मुनि, विद्वान और दूरदर्शी हुए है, जिन्होनें ज्ञान के द्वारा भारतीय संस्कृति की नींव ऐसी पुष्ट आधार शिलाओं पर रखी की जिससे मनुष्य के सर्वोच्च
सदगुणों का विकास होता है। वेदों, उपनिषदों, पुरानों, रामायण, श्रीमाद्भागावादागिता व अन्य पवित्र ग्रंथो में जो ज्ञान दिया गया है। वह भारत की संचिंत निधि है, जितना उसका उपयोग करो , वह औरो बढाती है। इस ग्रंथो में दिया गया वह अमूल्य दान है, जिसे पाकर प्रत्येक मनुष्य सच्चे सुखा को प्राप्त कर सकता है। इस शृंखला मै "अष्टावक्र महागीता" एक अनन्य ग्रन्थ है। जो राजा जनक और बालक अष्टावक्र के परस्पर वार्तालाप परे आधारित है।
अष्टावक्र १२ वर्ष का एक छोटा सा बालक है, परे ज्ञान में बहुत बड़ा है। अष्टावक्र के पिता राजा जनक के सभा में आए अन्य विद्वान्नों नें उसके पिता को पराजित कर दिया। वह स्वयं सभा में गया, बालक आठ जगह से टेका था, सभा मै बैठे विद्वान उसको देखकर हंसने लगे, बालक शांत खड़ा रहा, जब सब चुप हो गए, तो बालक जोर से हँसाने लगा, पुच्छे जाने परे उसने हसने का कारन बताया। उससे कहा "यहाँ ज्ञानके पारखी नही, अपितु चमडी के पारखी बैठे है"। बस यह उक्ति ज्ञान की पहली ज्योति थी, जिसने राजा जनक भी क्र्रुद्ध, और तब राजा की प्रार्थना परे अष्टावक्र ने जो ज्ञान राजा जनक को दिया, उसी से एक ग्रन्थ उपजा "अष्टावक्र महागीता" । यह ग्रन्थ एक अमूल्य सम्पति है।
आपके संग्रह में इस अमूल्य ग्रथ की परम पूज्य श्री सुधान्शुजी महाराज ने वर्त्तमान समय के संधर्भ मै अपनी सरल, सरस, संम्मोहिनी वाणी में जो व्याख्या की है, वह इस ग्रन्थ को और भी मूल्यवान बना देती है। आज इंसान बड़ी उल्ज़न में है, उसे वह सब कुछ अचछअ लगता है जो उसे और शान्ति देता है।
परम शान्ति देने वाली यह पुस्तक " आत्मजागरण की वेला " उस शक्ति का मार्ग सुगम बना देती है।
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